ग़ज़ल
क़ैस बन सकता हूँ फ़रहाद भी हो सकता हूँ
मैं तेरे इश्क़ में बर्बाद भी हो सकता हूँ
ये असीरी तो फ़क़त शौक़े क़फ़स है मेरा
ज़िद पे आ जाऊँ तो आज़ाद भी होसकता हूँ
ये भी मुमकिन है कि मैं वह्मो गुमाँ हूँ तेरा
मैं तेरे ज़हन की ईजाद भी हो सकता हूँ
बे सदा हर्फ़ हूँ औराक़ के तहख़ानों का
तू अगर चाहे तो इरशाद भी हो सकता हूँ
बस ये हसरत है कि तामीर में काम आ जाऊँ
मैं तो मीनार की बुनियाद भी हो सकता हूँ
इक तग़ाफ़ुल से बिखर सकता हूँ शीशे की तरह
हौसला दे मैं फ़ौलाद भी हो सकता हूँ
غزل
قیس بن سکتا ہوں فرہاد بھی ہو سکتا ہوں
میں ترے عشق میں برباد بھی ہو سکتا ہو
یہ اسیری تو فقط شوق قفس ہے میرا
ضد پہ آ جاؤں تو آزاد بھی ہو سکتا ہوں
یہ بھی ممکن ہے کہ میں وہم وگماں ہوں تیرا
میں ترے ذھن کی ایجاد بھی ہو سکتا ہوں
بے صدا حرف ہوں اوراق کے تہخانوں کا
تو اگر چاہے تو ارشاد بھی ہو سکتا ہوں
بس یہ حسرت ہے کہ تعمیر میں کام آ جاؤں
میں تو مینار کی بنیاد بھی ہو سکتا ہوں
اک تغافل سے بکھر سکتا ہوں شیشے کی طرح
حوصلہ دے تو میں فولاد بھی ہو سکتا ہوں
نفس انبالوی