ग़ज़ल
ये हुक्म है कि रिआया सवाल भी करे
अमीरे शहर का फ़रमान है कि ज़ब्त करो
वो घर जला दे कोई वबाल भी न करे
जहां कहीं भी जलीं मशअलें बुझा दी गईं
हवा वही तो चरागों का हाल भी न करे
ख़ुदा से ऐसी मसाफ़त न मांग ऐ नादां
कि जो थकन भी न दे और निढाल भी न करे
उसे मैं दोस्त नहीं दुश्मनों में गिनता हूं
जो तर्क करके तअल्लुक बहाल भी न करे
नफ़स अम्बालवी
मलाल - दुःख, रिआया - जनता , अमीरे शहर - नगराधीश
मशअलें - मशालें, मसाफ़त - यात्रा, तर्क - तोड़ना
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