ग़ज़ल के बादशाह मरहूम जगजीत सिंह की याद में......
हर रहगुज़र उदास है मंज़र उदास है,
तुम क्या गए सुख़न का समंदर उदास है।
कुछ कम सी हो गई है चरागों में रौशनी,
गमगीं है शाम सुब्ह का अख्तर उदास है।
इस धूप से कहो कि मिरे घर के सहन में,
कुछ देर ठहर जाए मिरा घर उदास है।
लहजे में लर्ज़िशें हैं तखय्युल में बेखुदी,
अशआर कह रहे हैं सुखनवर उदास है।
कुछ तो कमी है तेरे मुजस्सिम में बुततराश !
तुझ में हुनर नहीं है या पत्थर उदास है।
अफ्सुर्दगी का दिल में ये आलम है ऐ 'नफस',
उतरा है जब से दिल में ये खंज़र उदास है।
अख्तर-सितारा, लर्ज़िशें-कंपकपाहट, तखय्युल-कल्पना,
सुखनवर-शायर, मुजस्सिम-मूर्ति, बुततराश-मूर्तिकार, अफ्सुर्दगी-उदासी
Nafas ki gazlen
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इस धूप से कहो कि मिरे घर के सेहन में
ReplyDeleteकुछ देर ठहर जाए मिरा घर उदास हूँ
Subhan Allah...kya ashaar kahen hain...Bahut khoob.
Neeraj