यूँ तो खुद अपने ही साए से भी डर जाते लोग
हादसे कैसे भी हों लेकिन गुज़र जाते हैं लोग
जब मुझे दुश्वारियों से रूबरू होना पड़ा
तब मैं समझा रेज़ा रेज़ा क्यूँ बिखर जाते हैं लोग
सिर्फ़ ग़ाज़ा ही नहीं चेहरों की रानाई का राज़
शिद्दत-ए-ग़म की तपिश में भी निखर जाते हैं लोग
मसअले आ कर लिपट जाते हैं बच्चों की तरह
शाम को जब लौट कर दफ़्तर से घर जाते हैं लोग
शाम को जब लौट कर दफ़्तर से घर जाते हैं लोग
अपनी दुनिया से भी आगे कोई दुनिया है ज़रूर
वर्ना मर जाने पे दुनिया से किधर जाते हैं लोग
हाथ जब कोई नहीं उठता बुझाने के लिए
देख कर जलता हुआ घर क्यूँ ठहर जाते हैं लोग
हर "नफ़स" मर मर के जीते हैं तुझे ऐ जिंदगी
और जीने की तमन्ना में ही मर जाते हैं लोग
हर "नफ़स" मर मर के जीते हैं तुझे ऐ जिंदगी
और जीने की तमन्ना में ही मर जाते हैं लोग
शब्दार्थ :
शिद्दत ए ग़म - दुख की अति, ग़ाज़ा- चेहरे पर मलने वाला पाउडर,
रानाई - सुंदरता, मसअले - समस्याएँ, नफ़स
bahut hi umdaa...
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