ग़ज़ल
वो मेरा दोस्त है और मुझसे वास्ता भी नहीं
शब्दार्थ :
जो कुर्बतें भी नहीं हैं तो फासला भी नहीं
किसे खबर थी की उस दश्त से गुज़ारना है
जहां से लौट के आने का रास्ता भी नहीं
कभी जो फूट के रो ले तो चैन पा जाए
मगर ये दिल मिरे पैरों का आबला भी नहीं
सुना है वो भी मिरे क़त्ल में मुलव्वस है
वो बेवफ़ा है मगर इतना बेवफ़ा भी नहीं
वो सो सका न जिसे छीन कर कभी मुझसे
मैं उस ज़मीन के बारे में सोचता भी नहीं
ये रेगज़ार मिरी ज़ीस्त का मुक़द्दर हैं
नज़र की हद कहीं कोई काफ़िला भी नहीं
सुना था शहर में हर सू तुम्हारा चर्चा है
यहाँ तो कोई "नफ़स" तुमको जानता भी नहीं
कुर्बतें - नज़दीकियाँ, दश्त - जंगल, आबला - छाला
मुलव्वस - शामिल, रेगज़ार - रेगिस्तान, ज़ीस्त - ज़िन्दगी
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