Nafas ki gazlen

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Saturday, April 1, 2023

                          ग़ज़ल 

उम्र  भर  दर्द के  रिश्तों  को  निभाने  से रहा
ज़िंदगी  में   तो   तिरे  नाज़  उठाने  से  रहा

जब  भी  देखा  तो किनारों  पे तड़पता  देखा
ये  समंदर  तो  मिरी  प्यास  बुझाने  से रहा

बस यही सोच के सर अपना कलम कर डाला
अब वो इल्ज़ाम  मिरे सर तो लगाने से रहा

इस  ज़माने में  जहालत  से  गुज़र  होती है
अब हुनर से तो कोई घर को  चलाने से रहा

हम ही  तरकीब  करें  कोई  उजालों के लिए
अब  अँधेरा  तो  चराग़ों को  जलाने से रहा

वक़्त के मरमरीं पत्थर पे ग़ज़ल लिखता हूँ
ये इबारत कोई  मौसम  तो मिटाने से रहा

बे अल्लुक तो नहीं उम्र गुजारी है 'नफ़स'
रिश्ता गैर  सही कुछ  तो ज़माने से रहा

                                  नफ़स अम्बालवी
 
               غزل 

عمر بھر درد کے رشتوں کو نبھانے سے رہا
زندگی میں  تو ترے  ناز  اٹھانے  سے رہا

جب  بھی  دیکھا  تو کناروں پہ تڑپتا دیکھا
یہ سمندر تو مری  پیاس  بجھانے سے رہا

بس  یہی   سوچ   کے  سر اپنا  قلم  کر ڈالا
اب  وہ  الزام  مرے  سر تو لگانے سے رہا

اس زمانے میں  جہالت  سے گزر ہوتی ہے
اب ہنر سے تو کوئی گھر کو چلانے سے رہا

ہم ہی ترقیب کریں  کوئی  اجالوں کے لئے
اب اندھیرا تو چراغوں کو جلانے سے رہا

وقت کے  مرمریں  پتھر پہ غزل لکھتا ہوں
یہ عبارت  کوئی  موسم تو  مٹانے سے رہا

بے  تعلّق  تو نہیں  عمر گزاری  ہے  نفس
رِشتہِ  غیر  سہی  کچھ  تو زمانے سے رہا

 نفس انبالوی


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