Nafas ki gazlen

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Tuesday, January 19, 2021

बाज़ी  अगर्चे  ज़ीस्त  की  हम  हार तो  गए
लेकिन जो दिल पे नक़्श  थे आज़ार तो गए

कितने शनावरों को ये दरिया निगल गया
तुग़यानियों  में  डूब  के  हम  पार  तो गए

हम लोग अब क़दीम नुमाइश की चीज़ हैं
बाज़ार  से  अब  अपने  ख़रीदार  तो  गए

बारिश का ज़ोर है मिरे ख़स्ता मकान पर
लगता है अब  के  ये  दरो-दीवार  तो गए

मौकूफ़  है अब  उसकी  गवाही पे फ़ैैैैसला
उसने भी कह दिया जो गुनहगार तो गए

वो दरमियाँ ग़ज़ल के जो उठ कर चला गया
ऐ   बज़्मे-शायरी !  तेरे   मेयार   तो  गए

लगता  अब तो  जान ही जायेगी एक दिन
इस शायरी के  शौक़  में घर  बार  तो  गए

चल ऐ "नफ़स" कि हम भी कहीं और जा बसें
दो चार  थे जो  शहर में  ग़मख़्वार  तो गए

                                 नफ़स अम्बालवी

ज़ीस्त - जीवन, - दुःख, शनावर - तैराक,
तुग़्यानियाँ - सैलाब, क़दीम - पुरातात्विक
मौक़ूफ़ - आधारित, ग़मख़्वार - हमदर्द 

بازی اگرچہ زیست کی ہم ہار تو گئے
لیکن جو دِل پہ نقش تھے آزار تو گئے

کتنے شناوروں کو یہ دریا نگل گیا
طغیانیو میں ڈوب کے ہم پار تو گئے

بارش کا زور ہے میرے خستہ مکان پر
لگتا ہے اب کے یہ در و دیوار تو گئے

ہم لوگ اب قدیم نمائش کی چیز ہیں
بازار سے اب اپنے خریدار تو گئے

موقوف ہے اب اُس کی گواہی پہ فیصلہ
اُس نے بھی که دیا جو گُنہگار تو گئے

وہ درمیاں غزل کے جو آٹھ کر چلا گیا
اے بزمِ شاعری تیرے میعار تو گئے

لگتا ہے اب تو جان ہی جائے گی ایک دن
اِس شاعری کے شوق میں گھر بار تو گئے

چل اے نفس کہ ہم بھی کہیں اور جا بسیں
دو چار تھے تو شہر میں غم خوار تو گئے 

................................ نفس انبالوی

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