अब न मैं हूँ न मिरा ग़म है न जाँ बाक़ी है
ज़िन्दगी बस तिरे होने का गुमाँ बाक़ी है
इतना खुश भी न हो ऐ मुझको जलाने वाले
देख जल कर भी अभी मुझमें धुआँ बाक़ी है
मेरी मुश्किल कि मैं ख़ुद अपनी ज़ुबाँ काट चुका
उसको ये डर कि अभी मेरा बयाँ बाक़ी है
कुछ तो इस बार बहारों ने भी ढाये हैं सितम
उस पे ये जब्र कि मौसम में ख़िज़ाँ बाक़ी है
जिस्म के साथ तमन्ना भी गई हसरत भी
अब यहाँ कोई मकीं है न मकाँ बाक़ी है
मुझको अब पहले सी निस्बत भी नहीं है तुझसे
अब तुझे मुझ से मुहब्बत भी कहाँ बाक़ी है
भर गया ज़ख़्म ग़नीमत है कि ज़िंदा हूँ अभी
दिल पे अब तक भी मगर उसका निशाँ बाक़ी है
घर का आँगन भी बँटा खेत भी तक़सीम हुए
इतना खुश भी न हो ऐ मुझको जलाने वाले
देख जल कर भी अभी मुझमें धुआँ बाक़ी है
मेरी मुश्किल कि मैं ख़ुद अपनी ज़ुबाँ काट चुका
उसको ये डर कि अभी मेरा बयाँ बाक़ी है
कुछ तो इस बार बहारों ने भी ढाये हैं सितम
उस पे ये जब्र कि मौसम में ख़िज़ाँ बाक़ी है
जिस्म के साथ तमन्ना भी गई हसरत भी
अब यहाँ कोई मकीं है न मकाँ बाक़ी है
मुझको अब पहले सी निस्बत भी नहीं है तुझसे
अब तुझे मुझ से मुहब्बत भी कहाँ बाक़ी है
भर गया ज़ख़्म ग़नीमत है कि ज़िंदा हूँ अभी
दिल पे अब तक भी मगर उसका निशाँ बाक़ी है
घर का आँगन भी बँटा खेत भी तक़सीम हुए
पर हिस्सों में न बँट पाई वो माँ बाक़ी है
शब्दार्थ :
ख़िज़ाँ - पतझड़, मकीं - मकान में रहने वाला,
ख़िज़ाँ - पतझड़, मकीं - मकान में रहने वाला,
निस्बत - सम्बंध, तक़सीम - बंटवारा
اب نہ میں ہوں نہ مرا غم ہے نہ جاں باقی ہے
زندگی بس ترے ہونے کا گُماں باقی
اتنا خوش بھی نہ ہو اے مجھ کو جلانے والے।
دیکھ جل کر بھی ابھی مجھ میں دھواں باقی ہے
میری مُشکِل کہ میں خود اپنی زباں کاٹ چُکا
اُس کو یہ ڈر کہ ابھی میرا بیاں باقی ہے
کچھ تو اِس بار بہاروں نے بھی ڈھائے ہیں ستم
اس پہ یہ جبر کہ موسم خزاں باقی ہے
جسم کے ساتھ تمنا بھی گئی حسرت بھی
اب یہاں کوئی مکیں ہے نہ مکاں باقی ہے
مجھ کو اب پہلے سی نسبت بھی نہیں ہے تجھ سے
اب تجھے مجھ سے مہبّت بھی کہاں باقی ہے
بھر گیا زخم غنیمت ہے کہ زندہ ہوں ابھی
دِل پہ اب تک بھی مگر اُس کا نشاں باقی ہے
گھر کا آنگن بھی بنٹا کھیت بھی تقسیم ہوئے
پر جو حصّوں میں نہ بنٹ پائی وو ماں باقی ہے
نفس انبالوی ..............................................
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