हर क़दम इब्तिदा सा लगता है
ये सफ़र कुछ नया सा लगता है
हो गया जब से वो जुदा मुझसे
हर कोई बेवफ़ा सा लगता है
कौन जाने ये कब छलक उट्ठे
शाम से दिल भरा सा लगता है
हर कोई बेवफ़ा सा लगता है
कौन जाने ये कब छलक उट्ठे
शाम से दिल भरा सा लगता है
पूछ मत तश्नगी मिरी कि मुझे
अब समंदर ज़रा सा लगता है
सहमा सहमा है उम्र का चेहरा
आइना भी डरा सा लगता है
ये क़फ़स और धूप की किरचें
कोई रौज़न खुला सा लगता है
क्या भरोसा है कब बदल जाये
कोई रौज़न खुला सा लगता है
क्या भरोसा है कब बदल जाये
वक़्त भी सरफिरा सा लगता है
क्यूँ 'नफ़स' को सलीब देते हो
आदमी तो भला सा लगता है
शब्दार्थ :
इब्तिदा - आरम्भ, तश्नगी - प्यास, क़फ़स - कारागार
रौज़न - रोशनदान
ہر قدم ابتدا سا لگ تا ہے
یہ سفر کچھ نیا سا لگ تا ہے
ہو گیا جب سے وہ جدا مجھ سے
ہر کوئی بے وفا سا لگ تا ہے
کون جانے یہ کب چھلک اٹھے
شام سے دل بھرا سا لگ تا ہے
پوچھ مت تشنگی مری کہ مجھے
اب سمندر ذرا سا لگ تا ہے
سہما سہما ہے عمر کا چہرہ
آئنہ بھی ڈرا سا لگ تا ہے
یہ قفص اور دھوپ کی کرچیں
کوئی روزن خلا سا لگ تا ہے
کیا بھروسہ ہے کب بدل جائے
وقت بھی سرفرا سا لگ تا ہے
کیوں نفس کو صلیب دیتے ہو
آدمی تو بھلا سا لگ تا ہے
दोस्त और दोस्ती का दर्जा तो खुदा से भी ऊपर है साहब ! बहुत खूब !
ReplyDeleteशुभकामनाएं
बहुत अच्छी रचना. लिखते रहिये. शुभकामनायें.
ReplyDelete---
उल्टा तीर
बढिया प्रयास है आपका, धन्यवाद । इस नये हिन्दी ब्लाग का स्वागत है ।
ReplyDeleteशुरूआती दिनों में वर्ड वेरीफिकेशन हटा लें इससे टिप्पणियों की संख्या प्रभावित होती है
(लागईन - डेशबोर्ड - लेआउट - सेटिंग - कमेंट - Show word verification for comments? No)
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hello sir..
ReplyDeleteur certainly n able writter..ur words touched my heart..looking forward to new updates..
keep writting sir.
Dr. Sahab
ReplyDeleteApka andaj aur gazal kehne ka salika lajwab h.
with best Wishes
Dr. Prem Singh Pundir
Ambala Cantt.
Nafas ji, hum toe apke great fan ho gaye hai jee. I look forward to your new gazals, please keep writing. I have read your book 'Khwabon ke Saaye', it's beautiful, can't wait for your next one. God bless you.
ReplyDeletewah bahot acha..
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